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यत्र॒ वेत्थ॑ वनस्पते दे॒वानां॒ गुह्या॒ नामा॑नि। तत्र॑ ह॒व्यानि॑ गामय ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yatra vettha vanaspate devānāṁ guhyā nāmāni | tatra havyāni gāmaya ||

पद पाठ

यत्र॑। वेत्थ॑। व॒न॒स्प॒ते॒। दे॒वाना॑म्। गुह्या॑। नामा॑नि। तत्र॑। ह॒व्यानि॑। ग॒म॒य॒ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:5» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:21» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्याग्रहणविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वनस्पते) वन के पालन करनेवाले आप (यत्र) जिसमें (देवानाम्) विद्वानों के (गुह्या) गुप्त (नामानि) नाम (वेत्थ) जानते हैं (तत्र) वहाँ (हव्यानि) देने और लेने योग्य वस्तुओं को (गामय) पहुँचाइये ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वानों के हृदयों में स्थित और विद्या के प्रभाव से उत्पन्न हुए नामों को जानते हैं, वे बहुत सुख मनुष्यों को प्राप्त कराते हैं ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्याग्रहणविषयमाह ॥

अन्वय:

हे वनस्पते ! त्वं यत्र देवानां गुह्या नामानि वेत्थ तत्र हव्यानि गामय ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) अस्मिन् (वेत्थ) जानासि (वनस्पते) वनस्य पालक (देवानाम्) (गुह्या) गुप्तानि (नामानि) (तत्र) (हव्यानि) दातुमादातुमर्हाणि वस्तूनि (गामय) प्रापय। अत्र तुजादीनामिति दीर्घः ॥१०॥
भावार्थभाषाः - ये विदुषामन्तःस्थानि विद्याप्रभावेन जातानि नामानि जानन्ति ते पुष्कलं सुखं जनान् प्रापयन्ति ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्येच्या प्रभावामुळे विद्वानांच्या अन्तःकरणात उत्पन्न झालेली नावे जाणतात ते माणसांना खूप सुख प्राप्त करवून देतात ॥ १० ॥